Saturday, July 24, 2010

श्री शरीफ जी ने दुनिया की सबसे संकीर्ण जाति के मिथकों में से एक उपदेश ढूंढने में सफलता पाई, परंतु नजर पड़ गई .दिये।झूठी है यह कहानी।

श्री शरीफ जी ने दुनिया की सबसे संकीर्ण जाति के मिथकों में से एक उपदेश ढूंढने में सफलता पाई, परंतु नजर पड़ गई हमारी और हमने उनकी सफलता पर बेरियों के कांटे बिखेर दिये।झूठी है यह कहानी। 1-अगर गांधारी को भूख लगी थी तो किसी भी मृत राजा के रथ से भोजन लेकर खा सकती थी क्योंकि जो राजा लड़ने आये होंगे वे अपने साथ भोजन पानी भी तो लाए होंगे।2-सुज्ञ जैसे लोग बताते हैं कि महाभारत का युद्ध परमाणु अस्त्रों से लड़ा गया था। सो वहां तो परमाणु विकिरण ने सारे पेड़ और लाशें ही जला डाली होंगी। फिर वहां मृतक और बेरी का पेड़ होना असंभव है।3-इसके बावजूद यह सच्ची बात है कि भूख बहुत पीड़ा और अपमान देती है।4-इस बात को आप दलितों के जीवन की, बाबा साहब के जीवन की सच्ची घटनाओं के माध्यम से भी तो कह सकते थे, क्यों ?5-परंतु आपको तो सवर्णों के दिलों को जीतना है । उनकी कारों और कोठियों से आप रूआब खाते हो।6-आपको सच से सरोकार नहीं है बल्कि आपको तो बुढ़ापे में थोड़ी सी वाह वाह चाहिये।7-अरे वाह वाह तो दलित भी कर सकते हैं। थोड़ा आप उनकी तरफ कदम बढ़ाकर तो देखें।उस झूठी कहानी का एक भाग दिखाता हूं आप सभी लोगों को - महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कौरवों की मां गान्धारी अपने सभी सौ पुत्रों के मारे जाने के समाचार से आहत होकर युद्ध क्षेत्र का अवलोकन करने पहुंची और जब अपने एक पुत्र के शव को पड़े देखा तो बिलखकर रोने लगी। इस मन्ज़र को देखकर वहां उपस्थित लोगों के हृदय भी द्रवित हो गए परन्तु इसके पश्चात् जब उसका एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे शव से लिपटकर रोने का क्रम जारी हुआ तो इस हृदय विदारक दृश्य ने सभी उपस्थित जनों को विचलित कर दिया। वहां उपस्थित लोगों के आग्रह पर श्री कृष्ण ने इस शोकपूर्ण वातावरण को बदलने का उपाय इस प्रकार से किया कि गान्धारी को भूख का एहसास करा दिया। इस प्रकार वह भूख से इतनी विचलित हुई कि अपने पुत्रों की मृत्यु के दुःख को भूलकर पेट की भूख मिटाने का उपाय सोचने लगी। चारों ओर नजर दौड़ाने पर एक बेरी का वृक्ष दिखाई पड़ा जिसपर एक बेर लगा हुआ था। अपनी क्षुधापूर्ति हेतु गान्धारी ने उस बेर को तोड़ने का प्रयास किया परन्तु वहां तक हाथ न पहुंच पाया। हाथ बेर तक पहुंचे, इसके लिए जो तरकीब अपनाई गई उसका वर्णन रोंगटे खड़े करने देने वाला तो है ही साथ ही उससे यह भी ज़ाहिर होता है कि भूख से जो पीड़ा उत्पन्न होती है वह सारे दुःखों पर भारी है। वर्णन कुछ इस प्रकार है जब बेर तोड़ने के लिये गान्धारी का हाथ वहां तक नहीं पहुंच पाया तो नीचे ज़मीन पर पड़े हुए अपने एक पुत्र के शव को पेड़ के नीचे तक खींच कर लाई और उस पर चढ़कर प्रयास किया परन्तु हाथ फिर भी बेर तक न पहुंच पाया। फिर दूसरे पुत्र का शव खींच कर लाई और उसको पहले पुत्र के शव के ऊपर रखा परन्तु फिर भी सफल न हो पाई। चूंकि वहां आस पास उसी के पुत्रों के शव पड़े थे इसलिये वह उन्हीं को एक के बाद एक लाती रही और बेर तोड़ने का प्रयास करती रही। इस दिल हिला देने वाली घटना के बाद भूख को गान्धारी ने इस प्रकार से बयान है -

वसुदेव जरा कष्टम् कष्टम दरिद्र जीवनम्।
पुत्रशोक महाकष्टम् कष्टातिकष्टम परमाक्षुधा।।

अर्थात् हे कृष्ण! बुढ़ापा स्वयं में एक कष्ट है। ग़रीबी उससे भी बड़ा कष्ट है। पुत्र का शोक महा कष्ट है परन्तु इन्तहा दर्जे की भूख सारे कष्टों से भी बड़ा कष्ट है। ध्यान रहे गान्धारी ने स्वयं यह सारे कष्ट झेले थे।

14 comments:

  1. अरे भाई आप तो अब दलित नहीं रहे तो वैसी हीन ग्रंथि क्यों पाल रखी है | अब तो तुम आंबेडकर हो गए हो अब क्यों अपने को नीच समझते हो | बाबा साहब का कुछ तो मान रखो |

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  2. शरीफ जी

    http://swachchhsandesh.blogspot.com/2010/07/blog-post_24.html

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  3. भगवा आतंकवादियो से

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  4. डर गये
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  5. अगर भगवा नाराज़ हो गये
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  6. तो फर्जी एनकाउंटर करवा देंगे
    http://swachchhsandesh.blogspot.com/2010/07/blog-post_24.html

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  7. धन्यवाद

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  8. bahut sahi kaha apne

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  9. bhaai jaan naaraaz nhin hote kevl naaraa dete hen so kisi ko aetraaz nhin sbhi ko mryaadaaon me rehkr aazaad lekn kaa adhikaar he. akhtar khan akela kota rajsthan

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  10. Saty Gautam ji aapka dimaag thoda ajeeb lagta hai, chahe baat zaat-paat ki naa ho phir bhi zabardasti le aataaa hai..... akhir kyon??????

    mujhe lagta hai yeh keval prashansa paane ka hathkanda matr hai?

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  11. अरे भाई ये सत्य गौतम का ब्लाग है .वो अगर अपने ब्लाग पर दलितो के ऊपर हुये अत्याचारो के बारे मे कुछ लिखता है या अपनी भड़ास निकालता है. तो किसी और के पेट मे क्यो दर्द हो रहा है?

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  12. प्रिय श्री सत्य गौतम जी,
    आपने इस पूरे लेख को हमारे ब्लॉग भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (http://cpiup.blogspot.com) पर टिप्पणी के रूप में क्यों पोस्ट कर दिया, हम समझ नहीं पाए हैं। बेहतर होगा अगर आप इसे स्पष्ट करेंगे.
    - प्रदीप तिवारी

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  13. ,,,क्योंकि एक दलित को सिर छुपाने के लिए आपके दरवाजे सदा खुले मिलते हैं। इसलिए मैंने आपके ब्लॉग पर अपनी पोस्ट का अंश डाल दिया। बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूं।

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  14. अच्छा किया। आखिर आपने हमें अपना माना तो! चलेगा आगे भी।

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