भारत का शायद ही कोई ऐसा बुद्धिजीवी होगा जिसने डा. भीमराव अम्बेडकर की भांति गीता को एक ‘शरारतपूर्ण पुस्तक‘ कहा हो। सभी हिन्दू नेतागण-क्या समाज सुधारक और क्या राजनीतिज्ञ-गीता की प्रशंसा के पुल ही बांधते चले गये। विचारणीय बात तो यह है कि गीता के उपदेशों का अनुसरण करते हुये समाज कैसा निर्मित हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर श्री विवेकानंद के यह शब्द देते हैं-‘‘एक देश जहां लाखों लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है और जहां कुछ हजार पुण्य-व्यक्ति तथा ब्राह्मण गरीबों का खून चूसते है और उनके लिए कुछ भी नहीं करते। हिन्दोस्तान एक देश नहीं है जिन्दा नरक है। यह धर्म है या मौत का नाच।‘‘ -फ्ऱंट लाईन, दिनांक सितम्बर 18, 1993, पृष्ठ 11
यह अंश एल. आर. बाली,संपादक-भीम पत्रिका, की पुस्तक ‘हिन्दूइज़्म : धर्म या कलंक‘ से साभार उद्धृत है। मिलने का पता : ईएस-393 ए, आबादपुरा, जालंधर 144003
Thursday, June 24, 2010
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jai bheem hai ji.....
ReplyDeleteaapka aakrosh khatarnaak hai ji.....ise thoda or vistaar dena chaahiye......kuchh ankaha sa lag raha hai....
kunwar ji,
हा ये बात सत्य है की गीता में थोडा सा भ्रम है लेकिन जब भगवान् कृष्ण के पीछे ही कोई पड़ जाये तो फिर क्या करे ऊपर से भगवन दयावान भी है जैसे की सत्य गौतम कह रहा है मुझे कभी सम्मान नहीं मिला मुझे कभी सम्मान नहीं मिला तो दया वान भगवान् क्या करे अब ये नहीं पता की लोकतंत्र में उसे कैसा सम्मान चाहिए
ReplyDeleteशान्तिवीर की अगली टिप्पड़ी......
ReplyDelete(2)पुनः आपने लिखा है कि
""विचारणीय बात तो यह है कि गीता के उपदेशों का अनुसरण करते हुये समाज कैसा निर्मित हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर श्री विवेकानंद के यह शब्द देते हैं-‘‘एक देश जहांलाखों लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है और जहां कुछ हजार पुण्य-व्यक्ति तथा ब्राह्मण गरीबों का खून चूसते है और उनके लिए कुछ भी नहीं करते। हिन्दोस्तान एक देश नहीं है जिन्दा नरक है। यह धर्म है या मौत का नाच।""
तो विश्लेषण के लिए मैँ कहना चाहूँगा कि यह ब्लॉग मुख्यतः दलितोँ(जाति प्रस्तुति के लिए क्षमा चाहता हूँ) को बौध्दत्व की ओर आकर्षित करने के लिए किया गया है॥
अतः उदाहरण बौध्द-समुदाय से ही देना चाहूँगा। विदित होगा कि महात्मा बुध्द ने "अहिँसा परमोधर्मः" व जीव हत्या पाप है का अभूतपूर्व अनुसरण करने की सलाह दी थी॥ आज चीनchina जैसै विशाल देशोँ का यह मूल धर्म बन गया है॥ परन्तु आज वहाँ की स्थिति से आप भलीभाँति परिचित होँगे। तो इस प्रश्न का जवाब देँ कि...
(1)क्या चीन और अन्य बौध्द धार्मिक समुदाय माँसाहार नहीँ है?
(2)क्या बुध्द जी के उपदेशोँ के अनुसार बौध्द-धर्म की आश्रयस्थली चीन युध्द करना छोड़ चुकी है?
(3)तो क्या अब आधुनिक बौध्दोँ के माँसाहार यानि जीवहत्या, अब्रह्मचर्यता, व्यभिचार, चोरी,हिँसा आदि दुर्गुणोँ का दोषारोपण स्वयं "महात्मा बुद्ध" पर किया जाय?जैसा कि आप के द्वारा पवित्र ग्रन्थ "गीता" पर किया जा रहा है।
कृपया सर्वप्रथम इस बात का प्रत्युत्तर देँ....
अन्यथा अपने इन घृणित विचारोँ व कुंण्ठाओँ का प्रदर्शन करना बन्द कर देँ॥
"गीता" पर धार्मिक द्वेष रखना तो नकारात्मका व घृणित मानसिकता की दबी हुई सोच कही जायेगी क्योँकि"गीता" एक मानवमात्र का धर्मशास्त्र है, न कि धर्म विशेष का।
प्रमाणस्वरूप युध्दक्षेत्र मेँ कहे जाने के बाद भी गीता का कोई भी श्लोक मारकाट व हिँसा का समर्थन नहीँ करता क्योँकि स्वयं योगेश्वर कृष्ण ने गीता मेँ कहा है...
"इदं शरीरम् कौन्तेय क्षेत्रम् इति अभिधियते"
अर्थात् हे कौन्तेय! यह शरीर ही युध्दक्षेत्र के समान है॥
किसी ने सच ही कहा है कि
"घृणित कर्तव्य एवं नित्कृष्ट चिँतन हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है॥"
भारत ने विश्व को सभ्य और सुसंस्कृत बनाकर आर्य अथवा वैदिक संस्कृति विस्तीर्ण एवं प्रसारित की। लेकिन तीन सौ वर्षों की पराधीनता में भारत ने बहुत कुछ खोया है और आक्रमणकारियों द्वारा उसकी महानसंस्कृति की विनाश किया जाता रहाहै। अब वह समय है कि हम जागें और जो कुछ खोया है उसका पुनः संरक्षण करें।
"मेरी राष्ट्र की अखंडता में जो बाधक सिध्द होगा उसका मैँ सर्वनाश करूँगा । और स्वयं स्वर्ग के देवता भी मेरा मार्ग रोक नहीँ सकते ।"
--:आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य
अधिक जानकारी व सम्पर्क के लिए भ्रमण करेँ
http://www.answerstoislam.wordpress.com
ॐ
{वेदपुत्र सनातनी आर्य शान्तिवीर}
सादर प्रणाम संस्कृति-प्रेमियोँ!
ReplyDeleteऊपर दिये गये नकारात्मक लेख का अब मैँ अपने विचारोँ से क्रमबध्दतरीके से खण्डन करना चाहूँगा....
(1)"भारत का शायद ही कोई ऐसा बुद्धिजीवी होगा जिसने डा. भीमराव अम्बेडकर की भांति गीता को एक ‘शरारतपूर्ण पुस्तक‘कहा हो।"
तो इसके लिए मैँ कहना चाहूँगा कि"जो जैसा होता है, दुनिया भी उसकोवैसी ही दिखाई देती है।"
हँसी आती है.....
वैज्ञानिक मतानुसार तीन या चार हजार वर्ष पूर्व संकलित की गयी इस पूर्ण मनोवैज्ञानिक पवित्र ग्रन्थ को इतने लम्बे समयान्तराल के दौरान किसी भी स्वातन्त्र विचारधारा वाले व्यक्ति ने शरारत पूर्ण कहना तो दूर मुक्त-कंठ से प्रशंसा करने से भी नहीँ चूके। यदि अम्बेडकर के अवांछनीय शब्दोँ को उचित मानाजाय तो गीता के समर्थन मेँ उतरे उन हजारोँ स्वातन्त्र्य विचारकोँ की विचारधारा को अवाँछनीय कहा जायेगा॥
स्मरण रहे वे विचारक "स्वतन्त्र विचारधारा" से परिपूर्ण थे।
यदि अनुमति हो तो पूर्ण-प्रमाणिततथ्योँ व स्वातन्त्र्य विचारकोँको विस्तार पूर्वक प्रस्तुत करूँगा॥
शेष क्रमबध्द प्रत्युत्तर अगले टिप्पड़ी मेँ......
कुछ पूर्ण प्रमाणबध्द और सच्चाई को बयाँ करने वाली टिप्पड़ियाँ ब्लाग के सम्पादक द्वारा मिटा दी गयी हैँ।
ReplyDeleteMR ASTYA GOTAM GO TO HELL !!!YOU CAN BARK ONLY !!!
ReplyDeleteHAAN TO JISKO HINDU DHARM MAIN NHEE RHNA HAI VE JAYEN NA BHAD MAIN , ROKA KISNEY HAI !!!! ASTYA GOTAM IS A BARKING DOG ONLY ,CANT DO NOTHING !!!!
ReplyDeleteधर्म और संकृती के अस्तित्व के लढने वाले हमारे पुर्वज न होते, तो आज आप अपने आप को बुध्द धर्म के अनुगामी कहलाने लायक न होते!
ReplyDeleteधम्म अगर ठीक से पढोगे तो जानोगे बुध्द धर्म क्या है! जरा अपना ज्ञान बढाओ ज्ञानी बनो व्यर्थ वाचाल मत बनो!
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