http://www.tadbhav.com/dalit_issue/tasber_ka_dusra.html#tasber तद्भव से साभार
पेरियार रामायण इस दृष्टि से अस्मितामूलक अध्ययन की प्रस्तावना भी है। समस्या केवल यह है कि उसमें पौराणिक कथाओं के विखंडन के साथ साथ प्रतिशोध की उत्तेजना भी है जिसके चलते वह बहुत से अनर्गल ब्योरों में जा फंसती है। उदाहरण के लिए पेरियार भी विष्णु के घृणित अनैतिक चरित्रा का उल्लेख करते हैं। (दे. पृ. 9-10) राम, दशरथ, कौशल्या आदि के भी छल, पाखंड, अन्याय का वर्णन करते हैं। इसके लिए विभिन्न राम कथाओं और आधुनिक शोधों का उपयोग करते हैं। इस दृष्टि से उनका कार्य विद्वतापूर्ण है लेकिन पूर्व निश्चित या प्रचलित धारणाओं को उलटने की धुन में पेरियार अतिवाद तक जाते हैं। एक उदाहरण देखें। कौशल्या आदि मां कैसे बनीं?पेरियार रामायण इस दृष्टि से अस्मितामूलक अध्ययन की प्रस्तावना भी है। समस्या केवल यह है कि उसमें पौराणिक कथाओं के विखंडन के साथ साथ प्रतिशोध की उत्तेजना भी है जिसके चलते वह बहुत से अनर्गल ब्योरों में जा फंसती है। उदाहरण के लिए पेरियार भी विष्णु के घृणित अनैतिक चरित्रा का उल्लेख करते हैं। (दे. पृ. 9-10) राम, दशरथ, कौशल्या आदि के भी छल, पाखंड, अन्याय का वर्णन करते हैं। इसके लिए विभिन्न राम कथाओं और आधुनिक शोधों का उपयोग करते हैं। इस दृष्टि से उनका कार्य विद्वतापूर्ण है लेकिन पूर्व निश्चित या प्रचलित धारणाओं को उलटने की धुन में पेरियार अतिवाद तक जाते हैं। एक उदाहरण देखें। कौशल्या आदि मां कैसे बनीं? दशरथ से? यज्ञ से? नहीं; दशरथ ने होता, अवयवु और युवध नामक तीन पुरोहितों से ''अपनी तीनों रानियों से सम्भोग करने की प्रार्थना की।'' पुरोहितों ने ''अपने अभिलषित समय तक उनके साथ यथेच्छ सम्भोग करके उन्हें राजा दशरथ को वापस कर दी।'' (पृ. 11) ऐसे वर्णन न तथ्यपूर्ण कहे जायेंगे, न अस्मितामूलक, बल्कि कुत्सापूर्ण कहे जाऐंगे। ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवस्था में दलितों के साथ स्त्रिायां भी उत्पीड़ित हुई हैं। कौशल्या आदि को उनका वृद्ध नपुंसक पति अगर पुरोहितों को समर्पित करता है और पुरोहित उन रानियों से यथेच्छ सम्भोग करते हैं तो इससे स्त्राी की परवशता ही साबित होती है। दलित स्त्राीवाद ने जिसे ढांचे का विकास किया है, वह पेरियार की इस दृष्टि से बहुत अलग है। पेरियार का नजरिया उनके उपशीर्षकों से भी समझ में आता है, ÷दशरथ का कमीनापन' (पृ. 33), ÷सीता की मूर्खता', (पृ. 35), ÷रावण की महानता' (पृ. 38), इत्यादि। इस पक्षधर लेखन की प्रकृति को पूरी तरह समझने के लिए, दशरथ के उक्त कमीनेपन के विपरीत, रावण के प्रति पेरियार की हमदर्दी का उदाहरण भी देखना चाहिए। (कृपया नीचे उद्धृत अंश में अनुवाद की भ्रष्टता के लिए पेरियार को दोषी न समझें!) उनका कहना हैᄉ ''यदि हम रावण के प्रति निर्दिष्ट उस अभियोग का मामला, कि उसने सीता का स्त्राीत्व भ्रष्ट किया। वह उसे छल से ले गया। खुफिया विभाग के किसी अधिकारी को अनुसंधान के लिए सौंप दें। तथा खुफिया विभाग की रिपोर्ट किसी निष्पक्ष न्यायाधीश के समक्ष निर्णय के लिए प्रस्तुत की जाय और यदि राम को अभियोगी तथा रावण को अभियुक्त समझ कर राम की सुविधानुसार ही मामले का निर्णय किया जायᄉ तो हमें पूर्ण विश्वास है, कि न्यायाधीश रावण के पक्ष में ही अपना यह निर्णय देगा कि रावण निर्दोष तथा निष्कलंक है। उसे डरा व धमका कर निष्प्रयोजन फांस दिया।'' (पृ. 44) जांच अधिकारी, वकील और निष्पक्ष न्यायाधीश की सारी जिम्मेदारियां मानो पेरियार ने खुद ही सम्भाल ली हैं! ऐसी ÷आलोचना' का सामाजिक या सांस्कृतिक दृष्टि से क्या उद्देश्य है? यह शोधपूर्ण हो सकती है, तार्किक नहीं है। शुरू में पेरियार ने कहा थाᄉ ''राम और सीता में किसी प्रकार की कोई दैवी तथा स्वर्गीय शक्ति नहीं है।'' (पृ. 6) लेकिन रावण को निर्दोष तथा निष्कलंक सिद्ध करने के लिए जांच अधिकारी की हैसियत से वे पुराण कथाओं पर विश्वास कर बैठते हैं। उसका व्यभिचार न्यायसंगत है क्योंकि विष्णु ने जलंधर की पत्नी वृंदा का सतीत्व नष्ट किया था, बदले में वृंदा ने शाप दिया था कि ''ठीक यही दुःखद घटना तेरी स्त्राी के प्रति हो।'' (पृ. 52) अगर सीताहरण पूर्वजन्म के अभिशाप के कारण हुआ तो कथा में दैवीतत्व निहित मानना पड़ेगा। तर्क के बदले उत्तेजना से किये गये इस अध्ययन को आस्था की प्रतिलोम राजनीति कहा जा सकता है! यह ÷राजनीति' उत्पीड़ितों के आत्मसम्मान में सहायक नहीं होती। विद्वानों के इस चिन्तन से साधारण दलित लेखकों की समझ इसी बिन्दु पर अलग ही नहीं होती, श्रेष्ठ भी ठहरती है।सवर्ण आस्था हो या दलित आस्था, वे परस्पर पूरक हैं। उसका विकल्प है तार्किक ऐतिहासिक दृष्टिकोण। बुल्के ने रामकथा के सभी रूपों का विस्तृत अवगाहन करके यह सुचिन्तित निष्कर्ष प्रस्तुुत किया है कि ''....विभिन्न नागरिक समुदाय का विभिन्न रामायणों आदि में विश्वास है। इससे स्पष्ट है कि करोड़ों की आबादी वाले भारत में किसी भी ग्रंथ से किसी व्यक्ति या नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आज तक न तो कोई चोट पहुंची है, न अपमान हुआ है और भविष्य में भी न तो चोट पहुंचेगी, न अपमान होगा। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य यह है कि आज तक इस बीमारी में किसी भी व्यक्ति का न हार्ट फेल हुआ न मरा। आदि आदि।.... वास्तव में किसी भी व्यक्ति के विश्वास को न चोट पहुंचती है आर न अपमान होता है, बल्कि कुछ धूर्त राजनीतिक नेता सत्ता हथियाने और सामाजिक नेता झूठा बड़प्पन प्राप्त करने के लिए गरीबों और कमअक्ल लोगों को बरगला कर बवंडर खड़ा करके अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं। जागृत समाज को चाहिए कि उपरोक्त ऐसे दम्भी नेताओं की बातों में कभी न आयें।.... किसी बात को तब मानिये जब वह बात तर्क की कसौटी पर खरी उतरे।'' (सच्ची रामायण की चाभीः राम कथा, कल्चरल पब्लिशर्स, लखनऊ, प्रथम बार (हिन्दी) सन् 1971, पृ. 60) से? यज्ञ से? नहीं; दशरथ ने होता, अवयवु और युवध नामक तीन पुरोहितों से ''अपनी तीनों रानियों से सम्भोग करने की प्रार्थना की।'' पुरोहितों ने ''अपने अभिलषित समय तक उनके साथ यथेच्छ सम्भोग करके उन्हें राजा दशरथ को वापस कर दी।'' (पृ. 11) ऐसे वर्णन न तथ्यपूर्ण कहे जायेंगे, न अस्मितामूलक, बल्कि कुत्सापूर्ण कहे जाऐंगे। ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवस्था में दलितों के साथ स्त्रिायां भी उत्पीड़ित हुई हैं। कौशल्या आदि को उनका वृद्ध नपुंसक पति अगर पुरोहितों को समर्पित करता है और पुरोहित उन रानियों से यथेच्छ सम्भोग करते हैं तो इससे स्त्राी की परवशता ही साबित होती है। दलित स्त्राीवाद ने जिसे ढांचे का विकास किया है, वह पेरियार की इस दृष्टि से बहुत अलग है। पेरियार का नजरिया उनके उपशीर्षकों से भी समझ में आता है, ÷दशरथ का कमीनापन' (पृ. 33), ÷सीता की मूर्खता', (पृ. 35), ÷रावण की महानता' (पृ. 38), इत्यादि। इस पक्षधर लेखन की प्रकृति को पूरी तरह समझने के लिए, दशरथ के उक्त कमीनेपन के विपरीत, रावण के प्रति पेरियार की हमदर्दी का उदाहरण भी देखना चाहिए। (कृपया नीचे उद्धृत अंश में अनुवाद की भ्रष्टता के लिए पेरियार को दोषी न समझें!) उनका कहना हैᄉ ''यदि हम रावण के प्रति निर्दिष्ट उस अभियोग का मामला, कि उसने सीता का स्त्राीत्व भ्रष्ट किया। वह उसे छल से ले गया। खुफिया विभाग के किसी अधिकारी को अनुसंधान के लिए सौंप दें। तथा खुफिया विभाग की रिपोर्ट किसी निष्पक्ष न्यायाधीश के समक्ष निर्णय के लिए प्रस्तुत की जाय और यदि राम को अभियोगी तथा रावण को अभियुक्त समझ कर राम की सुविधानुसार ही मामले का निर्णय किया जायᄉ तो हमें पूर्ण विश्वास है, कि न्यायाधीश रावण के पक्ष में ही अपना यह निर्णय देगा कि रावण निर्दोष तथा निष्कलंक है। उसे डरा व धमका कर निष्प्रयोजन फांस दिया।'' (पृ. 44) जांच अधिकारी, वकील और निष्पक्ष न्यायाधीश की सारी जिम्मेदारियां मानो पेरियार ने खुद ही सम्भाल ली हैं! ऐसी ÷आलोचना' का सामाजिक या सांस्कृतिक दृष्टि से क्या उद्देश्य है? यह शोधपूर्ण हो सकती है, तार्किक नहीं है। शुरू में पेरियार ने कहा थाᄉ ''राम और सीता में किसी प्रकार की कोई दैवी तथा स्वर्गीय शक्ति नहीं है।'' (पृ. 6) लेकिन रावण को निर्दोष तथा निष्कलंक सिद्ध करने के लिए जांच अधिकारी की हैसियत से वे पुराण कथाओं पर विश्वास कर बैठते हैं। उसका व्यभिचार न्यायसंगत है क्योंकि विष्णु ने जलंधर की पत्नी वृंदा का सतीत्व नष्ट किया था, बदले में वृंदा ने शाप दिया था कि ''ठीक यही दुःखद घटना तेरी स्त्राी के प्रति हो।'' (पृ. 52) अगर सीताहरण पूर्वजन्म के अभिशाप के कारण हुआ तो कथा में दैवीतत्व निहित मानना पड़ेगा। तर्क के बदले उत्तेजना से किये गये इस अध्ययन को आस्था की प्रतिलोम राजनीति कहा जा सकता है! यह ÷राजनीति' उत्पीड़ितों के आत्मसम्मान में सहायक नहीं होती। विद्वानों के इस चिन्तन से साधारण दलित लेखकों की समझ इसी बिन्दु पर अलग ही नहीं होती, श्रेष्ठ भी ठहरती है।सवर्ण आस्था हो या दलित आस्था, वे परस्पर पूरक हैं। उसका विकल्प है तार्किक ऐतिहासिक दृष्टिकोण। बुल्के ने रामकथा के सभी रूपों का विस्तृत अवगाहन करके यह सुचिन्तित निष्कर्ष प्रस्तुुत किया है कि ''....विभिन्न नागरिक समुदाय का विभिन्न रामायणों आदि में विश्वास है। इससे स्पष्ट है कि करोड़ों की आबादी वाले भारत में किसी भी ग्रंथ से किसी व्यक्ति या नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आज तक न तो कोई चोट पहुंची है, न अपमान हुआ है और भविष्य में भी न तो चोट पहुंचेगी, न अपमान होगा। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य यह है कि आज तक इस बीमारी में किसी भी व्यक्ति का न हार्ट फेल हुआ न मरा। आदि आदि।.... वास्तव में किसी भी व्यक्ति के विश्वास को न चोट पहुंचती है आर न अपमान होता है, बल्कि कुछ धूर्त राजनीतिक नेता सत्ता हथियाने और सामाजिक नेता झूठा बड़प्पन प्राप्त करने के लिए गरीबों और कमअक्ल लोगों को बरगला कर बवंडर खड़ा करके अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं। जागृत समाज को चाहिए कि उपरोक्त ऐसे दम्भी नेताओं की बातों में कभी न आयें।.... किसी बात को तब मानिये जब वह बात तर्क की कसौटी पर खरी उतरे।'' (सच्ची रामायण की चाभीः राम कथा, कल्चरल पब्लिशर्स, लखनऊ, प्रथम बार (हिन्दी) सन् 1971, पृ. 60)
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अरे भाई इतनी मेहनत करके कहाँ कहाँ से ग्रन्थ खोज के ला रहे हो .
ReplyDeleteअब ये पेरियार किस चिड़िया का नाम है?
रामलला से कोई दुश्मनी है क्या है?
अगर है भी तो उसे अपने मन मे रखो भाईँ.
इस तरह ब्लाग पर रामलला या गीता पर अगड़म बगड़म मत लिखो.
ये अनर्गल प्रलाप लग रहा है...
ReplyDeleteये पेरियार जो भी है उनकी बातें सर्वथा अनुचित लग रही हैं...
मैं इसकी भर्त्सना करती हूँ...
suprem court ka d
Deleteपेरियार ने सब सत्य ही लिखा है मै तुम्हारी भर्सना करता हू 8273672901 मेरा नं है मै सब सब पंडितो को शूद्र घोषित करता हू और सब दलित भाइयो को अपने आर्य समाज के जरिए पंडित बनाने की घोषणा करता हूं
Deleteपेरियार ने सब सत्य ही लिखा है मै तुम्हारी भर्सना करता हू 8273672901 मेरा नं है मै सब सब पंडितो को शूद्र घोषित करता हू और सब दलित भाइयो को अपने आर्य समाज के जरिए पंडित बनाने की घोषणा करता हूं
DeleteYou may be telling right, but its nice to say it politly,
ReplyDeletevivj2000.blogspot.com
बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने , अपने ही पूर्वजो के बारे मैं. अगर आप के पिता जी या माता जी से कोई भूल हो जाये या वो जो कर रहे हैं आपकी नज़र मैं गलत है तो क्या आपने माता या पिता जी को बदल देंगे या उन्हें सुधारने कि या खुद सुधरने कि कोशिश करेंगे ? क्या आपके पास इसका जब है , अगर है तो दीजिये.
ReplyDeleteअगर आप इतने ही सच्चे इन्सान हैं तो अपनी पहचान ले कर के सामने आइये. आप कौन हैं और कौन सी आई डी इस्तेमाल कर रहे , आज कल बहुत ही आसान हो गया है पता करना.
बेटा पेरियार भी मैकाले की औलाद है और तुम भी.अपने इतिहास में जाकर देखो.ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र पहले जन्म से नहीं होते थे.उनके काम से उनको वैसा काम सौपा जाता था.यह तो तुम्हारे जैसे ब्रह्मण हुए (जो न हिन्दू थे और न ही सनातनी)उन्होंने अपने निहित स्वार्थ के लिए वर्णव्यवस्था बदला की ब्राह्मण के यहाँ जन्म लेने वाले ब्राह्मण होंगे और शुद्र के याहन जन्म लेने वाले शुद्र.ये सनातन नहीं है.हो सकता अगर तुम पुराने समय में होते तो अपने कर्म से ब्राह्मण हो जाते....तो तुम्हे अगर .....................
ReplyDeleteहमारा कर्म हमें ब्रह्मण शुद्र बनाता है.........
राहुल पंडित हिन्दू जाती को ४०० वर्षो तक गोर वर्ण अंग्रेजो ने चोदा और उसके पूर्व १००० वर्षो तक मुसलमानो ने ठोका अब जो नपुंसक हिन्दू है वह सब इन का नतीजा है
Deletechutiya hai to sala
DeleteKISIKO CHODANESE SANTAN KI UTPATI HOTI HAY TUMAHARI MA BAHE UNKOKO HI KOE CHODA HOGA TOHI TUM BANE HAJARO SAL PAHALE NATO JATI VEVASTHA THI RAHI APASI DUSMANI KE KARAN HAR KISIKO NICHA DIKANE KI VEVASTH TUM JAISE ASABHA LOGO KI DEN HAY
DeleteTarkeshwar GIRI ji अभी तक आप मारीची के इस वंशज़ को पहचान नही पाये क्या? अरे यह अप्ने पुराने मायावी कैरानवी हैं, जो रूप बदल बदल कर कभी impact तो कभी aamir तो कभी सत्य गौतम के नाम से हम सबको मदारी का खेल दिखाने आता रहता है।
ReplyDeleteसत्य गौतम अभावों की कोख से जन्मा हुआ और जीवन के घावों को ढोने वाला एक ऐसा बदनसीब इंसान है जिसे किसी से प्यार के बोल सुनने नसीब न हुए, न आज न पहले। सत्य गौतम केवल सत्य गौतम है, अगर कैरानवी होता तो अच्छा होता। उसे अपने अभावों और घावों की पूर्ति के लिए किसी ‘रब‘ का आसरा तो है। यहां तो ‘अप्प दीपो भवः‘ होना पड़ता है। वह परलोक आत्मा और तकदीर को मानता है यहां इसका कोई अनुभव नहीं है। जिसका अनुभव ही नहीं है उसे मानना मेरा काम नहीं है और उसके इंकार में समय लगाना भी मैं अपनी ऊर्जा गंवाना ही मानता हूं।मैं सत्य को कम जानता हूं और असत्य को पूरा। सम्मान की केवल परछाईयां ही देख पाया हूं जबकि तिरस्कार और अपमान हर पल मुझे डसते रहते हैं। यह डंक और यह पीड़ा मुझे उनसे मिलती है जो ‘धर्म परिवर्तन‘ के विरूद्ध स्वर मुखर करते रहते हैं। उनकी गल्ती भी मैं नहीं मानता ‘हिंदू ग्रंथ‘ उनका मन ऐसा ही बना देते हैं। जिसे वे धर्म समझते हैं वही मेरी और मेरे समाज की पीड़ा का मूल कारण है जिसे मैं समय के साथ नष्ट होते हुए देखने का सोने जैसा अवसर पाकर खुश हूं। अपनी खुशी को SHARE करने के लिए ही मैंने यह ब्लाग बनाया है और जो मैंने जिस समाज से पाया है वही उस समाज को लौटा रहा हूं। जो सच देखा है भोगा है जाना है समझा है वही आपको बता रहा हूं।
ReplyDeleteचाहे समाज में कुछ भी देखा हो या सहा हो इसका मतलब ये नहीं होता की देवी देवताओ पर ही कीचड़ उछालनी शुरू कर दी लोग आज भी घर की शुद्दी के
ReplyDeleteलिए यज्ञ कराते है और भी बहुत सारे प्रयोजनों से यज्ञ हवनं आदि कराते है कोई अपने जन्म दिन पर यज्ञ कराता है तो उसका भी कोई उल्टा अर्थ निकाल के पोस्ट कर दियो और शायद पेरियार या दलितों में ऐसा रहा होगा इसीलिए तो दुसरो पर देवी देवताओ पर कीचड़ उछाल रहा है
अरे भाई, होश मे तो हो?
ReplyDeleteAre nadan balak(n jane tu buda ho gaya hoga par teri akl shaitan ke bachhose bhi gayi gujri he.)Tu is duniya me paida hi kyu huva(kya kare tera bap ravan hi hoga.... sorry ravan to thoda bahut achha tha magar tu jarur kisi gaye gujre rakshas ki aulad hoga.)abe sale tu yah likhane se pahle mar kyu nahi gaya.tuj jaise log hi anap-shnap likhkar desh me dange failate he kutte ki aulad.devata hindu ho, muslim ho ya kisi aur jat dharm ka ho unke khilaf likhne ka hak tuze kisne diya sale suvar ke jane.tu jis BAUDHHA DHARM ki bat karta he usme likha he ki parninda pap he.tu pahle apne dharm ko thikse padhle bad me idhar -udhar ungali dal sale gadhe ki suvar jani aulad.
ReplyDeleteनपुंसक
Deleteबहुत अच्छी और सही जानकारी दी है
ReplyDeleteप्रिय सत्य गौतम जी,
ReplyDeleteसमाजक्रांतिकारियों के भाग्य की यह विडंबना रही है कि जिनके उत्थान के लिये उन्होने प्रयास किया उन्ही की ओर से उन्हे गालियों की बौछार नसीब हुयी. हमारे समाज के लोग श्रद्धा नामक बीमारी से ग्रसित हैं जो आदमी को सत्य स्वीकारने से रोकती है और शीष झुकाकर शरणागत करवाती है. हिमालय की सबसे ऊँची चोटी पर जाने बाला तेनजिंग नार्गे जब नीचे उतरा तो एक महादेव भक्त बडी आस्था के साथ उनसे मिलने गये और पूछा कि क्या उन्हे हिमालय की चोटी पर भगवान शंकरजी दिखाई दिये. तेनजिंग नार्गे ने कहा कि उन्हे वहाँ कोई दिखाई नही दिया. इस पर उस भक्त ने बडे दुख से कहा कि आपको ऐसा नही कहना चाहिये था झूठ ही कह देते तो आपका क्या जाता था. आपने ऐसा कहकर हमारी श्रद्धा को ठेस पहुँचाई है. यांनि लोग श्रद्धा के वशीभूत होकर सत्य को नकारते है. श्रद्धा और भक्ती इन दो शस्त्रों के माध्यम से बहुजन समाज को ब्राम्हणों ने मानसिक गुलाम बनाया है. आज सच्चाई बयान करना यानि कीचड उछालना हो गया है. यानि कोई बडी श्रद्धा के साथ सर पे मैला ढोये जा रहा हो तो क्या हमे ये कहना चाहिये कि वाह क्या सुगंधित और पवित्र चीज लिये जा रहे हो. ऐसा कहना मानवता के विरुद्ध होगा. अब्राहम लिंकन ने जब काले लोगों को आजाद किया तो काले लोगों ने गुलामी से आजाद होने से इंकार कर दिया तब लिंकन ने उन्हे मार पीट कर जबरदस्ती आजाद किया. आज यही काले लोग अब्राहम लिंकन के शुक्रगुजार है. इसलिये आप व्यथित ना हो और अपना सत्यशोधन काम करते रहे. अपने लेख मे कृपया संदर्भ भी दिया करें ताकि आलोचक आलोचना करने से पहले कही गयी बात की सत्यता की जाँच कर सकें. आपने जो पेरियार की बात रखी है वो पेरियार ने अपने मन से कही नही है. उन्होने वाल्मिकीकृत रामायण का संदर्भ देकर कही है. अगर लोगों को संदेह हो तो पढ सकते हैं.ब्राम्हणो ने इन देवी देवताओं को हमारे सर पर तो बैठाया पर उनसे इतना भी न हो सका कि वे इन देवताओं के बारे मे धर्मग्रंथों मे अच्छा लिख सकें जिससे हमे देवताओ के प्रति अभिमान हो.
jab jago tabhi savera
ReplyDeleteसम्पूर्ण ब्लॉग के अध्ययन से पता चलता है कि यह ब्लाग मुख्य रूप से दलितोँ(जाति प्रस्तुति के लिए क्षमा करियेगा) को बौध्दत्व की ओर आकर्षित करने के लिए निर्माणित है॥
ReplyDeleteविदित होगा कि महात्मा बुध्द जी ने सम्पूर्णतः अहिँसा प्रसार के लिए बौध्द धर्म की स्थापना की थी॥
परन्तु मैँ "भारतभूमि" आप लोगोँ से ये पूछना चाहती हूँ कि क्या इस ब्लाग की प्रस्तुति हिन्दू भाईयोँ को मानसिक हिँसा की ओर नहीँ उद्वेलित करेगी?
धर्म प्रचार का यह कौन सा तरिका है कि करोणोँ हिन्दूओँ की श्रध्दाओँ को आघात पहुँचे?
क्या यह मानसिक हिँसा नहीँ है?
ब्रह्माण्डिय कारक को नमस्कार हो॥.......
Bilkul sahi baat kahi aapne.......... main bhi ek Buddhist hoon, per main isska virodha karta hoon. Kissi bhi aisa insaan[jo khudko "NASTIK" manta ho] usse koi haq nahi hain kissi "Ek Dharm ke prati upshabd kehane ka" Har ek insaan ki manyataye hain humain unhain thains pahouchani nahi chahiya.
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteऐसे बहुत से लेखक हैं जो केवल चर्चित होने के उद्देश्य से गलत सलत बातो को बिना किसि प्रमान के लिख देते हैं, हमें अप्ने विवेक से सहि और गलत का आभास करके हि निर्णय करना चहिये .
ReplyDeleteआप इसी तरह से लिखते रहे लैकिन रामायन के वाचक जान कर भी बैकूफ हैं
ReplyDeleteआप मुझे रामायण शब्द बता दीजिये .........आगे तब बात करूंगा आपकी माँ के पास कोण सा पुराहित आया था
ReplyDeleteरामायण शब्द का अर्थ ?????
ReplyDeleteare tuchcha prani naradham tu ne siddh kar diyaa ki tu nishachar ki aulad hai. agar tu ek baap ki aulaad hai to saamne a main tujhe sach bata doon.
ReplyDeletetu ya to atankwaadi hai ya phir teri kisine daba ke maari hai. tujh jaise log hamesha dalit hi rahegen.lekin jis din tu apni akhiri saans lega us wakt tere ye kuwichar tujhe chain se marne nahi dege.
"budham sarnam gachchami"
महाशय आप पहले अपनी भाषा सुधारिये। आप ऐसे अपशब्द बोलकर इतिहास को झुठला नहीं सकते हैं।
Deleteजो तर्क पूर्ण बातो पर और प्रमाणित बातो पर विशवाश नही करता वह मूर्ख होता है
ReplyDeletethis story is right.
ReplyDeleteye bahut hi galat bat hai
ReplyDeleteye bahut hi galat bat hai
ReplyDeleteयदि मान्यताएं अन्धविश्वास का रूप ले लें तो उन्हें सुधारना कोई बुराई नहीं है l ब्राह्मणों ने भगवान तो बना दिए लेकिन उनके बारे में उन्होंने जो अपने धर्मग्रंथों में लिखा है वो सच्चाई यदि दुनिया के सामने आती है तो इसमें बुराई क्या है l मैं सत्य गौतम जी का बड़ा आभारी हूँ उन्होंने इतनी महत्वपूर्ण जानकारी हम सबको दी l साथ ही पेरियार जी का भी जिन्होंने बड़ी मेहनत से हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करके सच्ची रामायण का निर्माण किया l
ReplyDeleteblog par bhavnao ko aahat karane vali baton ko likhana mai shabdik hinsa manta hoon isase sirf vivado ko hi janma milega
ReplyDeletesabse bade apne Maa-Baap , uske baad hmare Mahapurush,,,, baki to jise dekha nahi vo sab banawati hai..
ReplyDeletejo nyay aur satya ki kasauti par khara sidh ho vohi bhagwaan hum usi ki bhakti karte he chaahe vo kisi bhi naam se ki jaye
ReplyDeletekahana bahut asan hya nibhana kathin, samaj ka nirman kayasa huya, hindusthan me rahane wale kaya koi paraya hay, esne choda usene choda kahane se zagada karte ho, tumahri ma bahnoko ko ............. to bura lagata hay ab socho tumari ma bahan bhartiya hone ke nate meribhi ma bahn hay meyaha use dalit brahamin sudra vyasa varma ke rupme nahi dekhata ....... tumsare sanghati nahi ho esleye hi ___yavn__ aye ....angej ayae hari ejjat luti tumhare shabdose chodi __parvahato-- Teribhi maa thi meri bhi maa tihi-- koyo etarata haya apnoko gali, deke ham bh sudhar, tum bhi sudharo, appni aapni maa sanman karo, dronacharya
ReplyDeleteFazi aadmi ho fazri naam id faarzi tum farzi ho
ReplyDeleteFazi aadmi ho fazri naam id faarzi tum farzi ho
ReplyDeleteआप जानते हैं कि हम सभी को शिक्षा से वंचित रखा गया
ReplyDeleteजो ब़ामण राजपुत बनिया राम को अपना भगवान मानते हैं
वो मुझे बस ईतना बता दें कि जब सुपनेखा ने राम से बस इतना ही कहीं थीं कि हम आपसे शादी करना चाहती हूं। लेकिन यह बात लक्ष्मण को अच्छी नहीं लगी। लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दिया
जब राम को शादी नहीं करनी थी तो नाक काटने कि क्या जरूरत थी।
जब गुस्से में रावण ने सीता को अपने साथ ले गया तो आप बताइए कि जब लक्षमण ने रेखा खिंचा था और कहा था कि जब तक हम आयेंगे नहीं तब तक आप रेखा के बाहर नहीं जायेंगी अगर रेखा के बाहर सिता गयी तों ईसका
मतलब रावण ले नहीं गया था सिता का मन था कि हम रावण के साथ जाये क्यो की रावण से सिता का पर्याय हो गया था
फिर भी रावण सिता को हाथ तक नहीं लगाया । उसको अपने अशोक वाटिका में सुरक्षित रखा
आप बताएं इसमे राम अच्छा है कि रावण । .?
राम ने सूपनखा के नाक कान नही काटे थे ।राम की धर्म पत्नी सीता व लछमण की पत्नी उर्मिला थी । दोनो भाईयों ने शादी से मना कर दिया था । तब सूपनखा ने समझा कि मेरा तिरस्कार अपमान हुआ है इस भाव को प्रगट करने के लिए" नाक कान काटना" मुहावरा प्रयोग किया है ।
ReplyDeletePeriyar ki ma ka bhosda
DeletePeriyar ki ma ka bhosda
ReplyDeletePeriyar madarchod
ReplyDeleteDHARM GRANTH NA TO LEKHAN ME THE NAHI LIPI ME THE TO KANTHAST HAR KOYI UAPANI TIKA OUR SRAVAN SE GRANTHO SAHITYA KO SAMAZATA THA UNME PERIAYA JAYESE LOG UN GRANTHOKA HAVALA DETE THE YA SAMAJ ME AVEVASTH HINSA KARNE KELIYE LEKHOKA NIRMAN KARTE . ASEHI HOTA RAHA TO NA HINDU RAHEGA OUR NATO DALIT
ReplyDeleteINKA SABKE BAPA BANEGE TATHAKATHI MUGAL ANGEREJ AMERIKAN