Friday, June 25, 2010

मेरे राम …तुम सार्वकालिक अभागे हो।

मेरे राम …
Filed under: राम — गिरिजेश राव
मेरे राम
तुम कसौटी नायक हो।
तुम सार्वकालिक अभागे हो।
000
मेरे सामने जाने कितने बाली हैं


आधी क्या पूरी ताकत हर लेते हैं।
उनसे लड़ना है लेकिन छिपना नहीं है
मैं तुम्हारे समान कायर नहीं।
मेरी कसौटी है
भले न लड़ूँ लेकिन
उनके लिए वृक्ष अवश्य बनूँ
ताकि मेरी आड़ ले
वे मार सकें तुम्हारे जैसे मानवाधिकारों के हनक को।
मैं इस तरह से खुले में खड़ा लड़ता रहता हूँ
देखो कितने घाव खाए हैं-
मैं तुम्हारी तरह कायर नहीं।
000
सीता की अग्नि परीक्षा तो जाने हुई या नहीं
पर अभी भी तुम उसकी कसौटी पर कसे जाते हो
मानो मेरी बात
जाने कितने उदारवादी और (चाहे जो) वादी हो गए
प्रगतिशील हो गए
तुम्हें अग्नि परीक्षा की कसौटी पर कस कर।
मैं तुम्हें कसता हूँ
खग मृग तरु से सीता का हाल पूछ्ते तुम्हारे आसुओं पर।
सोचता हूँ कित्ता मूरख हूँ।
000
वे अभागे ऋषि महर्षि
अस्थि क्षेत्रों में तप करते
उनका मांस तक कोमल हो जाता था।
सुस्वादु राक्षस भोज।
राम तुम क्यों गए
उन सुविधाभोगियों के लिए लड़ने?
देखो इस वातानुकूलित लाइब्रेरी में
फोर्ड फाउंडेसन की स्कॉलरशिप जेब में डाले
कितने लोग विमर्श कर रहे हैं
इनकी कसौटी पर तुम हमेशा अपने को नकली पाओगे
राम! तुम कितने अभागे हो।
000
जाने किन शक हूणों के चारण कवियों ने
तुमसे शम्बूक वध करा डाला
उसकी कसौटी से तुम्हें दलित साहित्य परख जाता है
तुम उस कसौटी पर हो एक राजमद मत्त सम्राट
घनघोर वर्णवादी।
मैं अपनी कसौटी हाथ लिए भकुवाया रहता हूँ
कि तुम कसने से कुछ बच खुच गए हो
तो कसूँ तुम्हें
निषादराज के आलिंगन में
चखूँ तुम्हें शबरी के जूठे बेरों में।
कसूँ तुम्हें वानर भालुओं के
उछाह भरे शौर्य पर
(दलित शोषित लिखूँ क्या?
लेकिन वे तो इंसान हैं।
बात चीत करते
परिवारी वानर भालुओं की तरह
राक्षसों के आहार नहीं हैं वे)
वह आत्मविश्वास कैसे भर गए थे उनमें
खड़े हो गए वे नरमांस के आदियों के सामने
आहार नहीं समाहार बन, उनका संहार बन।
क्या वह केवल अपनी बीबी को वापस लाने को था
ताकि तुम्हारा पौरुष फिर से गौरव पा सके ?
मेरी कसौटी कुछ अधिक बर्बर है
लेकिन क्या करूँ?
तुम्हें ऐसे न कसूँ तो प्रगतिशील कैसे कहाऊँ!
000
विभीषण को राक्षस राज्य सौंप

सुग्रीव को वानर राज्य सौंप
निषादराज को जंगल, नदी, वन का दायित्त्व सौंप
तुम दरिद्र!
ऐश्वर्य पा इतने बौरा गए!
हजारो अश्वमेध यज्ञ कर गए?
राम !
बड़ा विरोधाभासी चरित्र है तुम्हारा!!
चरित्र की कसौटी पर तुम ‘फेल’ हो।
000
लांछ्न पर सीता को हकाल दिए
कैसी पीड़ा थी राम!
तुम्हारी रातें कैसी थीं राम
भोग विलास आनन्द कैसे थे राम!
सीता त्याग के बाद?
मुआफ करना मुझे यह सब पूछ्ना है
क्यों कि किसी सिरफिरे ने कहा है
तुमने ग्यारह हजार साल राज किया
सीता त्याग वाली बात उसी ने बताई थी
सच ही कहा होगा।
तुम नारी विरोधी !
मेरी कसौटी झूठ की कसौटी भले सही
तुम्हें कसना तो होगा ही।
(कोई मुझे बकवासी कह रहा है।)
000
तुम पाखंडी!
इतने निस्पृह अनासक्त थे तो
सीता भू-प्रवेश के बाद
लक्ष्मण को क्यों त्याग दिए?
स्वयं आत्महत्या कर गए
सरयू में छलांग लगा
कैसी कसौटी थी वह राम ?
मुझे हैरानी होती है
कोई तुम्हारी आत्महत्या की बात क्यों नहीं करता?
000
मेरे राम
कसौटियाँ सेलेक्टिव हैं
तुम हमेशा इन पर कसे जाओगे।
तुम्हारे जन्मस्थान के कसौटी स्तम्भ नकली थे
ढहा दिए गए।

इस ठिठुरती सर्दी में
सम्राट राम !
किसी गरीब रिक्शेवाले के साथ
तुम भी खुले में सो जाओगे।
मेरी इस कविता पर कुछ लोग हँसेंगे
कहेंगे इसे इसलिए दु:ख है कि
सम्राट और रिक्शेवाला एक साथ क्यों हैं?
मेरी कसौटी का संहार
मेरी बकवास और कंफ्यूजन का अंत
हर सुबह होता है राम
जब मैं सुनता हूँ
जम्हाई लेते रिक्शेवाले के मुँह से
पहली आवाज़
हे राम
मेरे राम . . .
http://girijeshrao.wordpress.com/category/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ae/
गिरिजेश राव से साभार

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