Monday, May 31, 2010

हिन्दू धर्म ग्रंथ


हिन्दू धर्म" href="http://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दू_धर्म">हिन्दू धर्म व्यक्ति प्रवर्तित धर्म href="http://hi.wikipedia.org/wiki/धर्म">धर्म नहीं है। इसका आधार वेदादि धर्मग्रन्थ है, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है। ये सब दो विभागों में विभक्त है-
इस श्रेणी के ग्रन्थ श्रुति कहलाते हैं। ये अपौरुषेय माने जाते हैं। इसमें वेद href="http://hi.wikipedia.org/wiki/वेद">वेद की चार संहिताओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों, उपनिषदों, वेदांग, सूत्र आदि ग्रन्थों की गणना की जाती है। आगम ग्रन्थ भी श्रुति-श्रेणी में माने जाते हैं।
इस श्रेणी के ग्रन्थ “स्मृति´´ कहलाते हैं। ये ऋषि प्रणीत माने जाते हैं।
इस श्रेणी में 18 स्मृतियाँ, 18 पुराण href="http://hi.wikipedia.org/wiki/पुराण">पुराण तथा रामायण href="http://hi.wikipedia.org/wiki/रामायण">रामायणमहाभारत href="http://hi.wikipedia.org/wiki/महाभारत">महाभारत ये दो इतिहास भी माने जाते हैं।
अनुक्रम[छुपाएँ]
१ श्रुति
१.१ वेद
१.२ ब्राह्मण
१.३ आरण्यक
१.४ उपनिषद्
१.५ वेदांग और सूत्र-ग्रन्थ
१.५.१ वेदांग
१.५.२ सूत्र-ग्रन्थ
२ स्मृति
२.१ पुराण
३ आगम या तन्त्रशास्त्र
३.१ आगम ग्रन्थ
३.२ तंत्र ग्रन्थ
३.३ यामल ग्रन्थ
४ देखें
५ सन्दर्भ
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[विभाग संपादन: श्रुति" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=1">संपादित करें] श्रुति
[विभाग संपादन: वेद" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=2">संपादित करें] वेद
यद्यपि वेद से ऋग्वेद href="http://hi.wikipedia.org/wiki/ऋग्वेद">ऋग्वेद, यजुर्वेद href="http://hi.wikipedia.org/wiki/यजुर्वेद">यजुर्वेद, सामवेद href="http://hi.wikipedia.org/wiki/सामवेद">सामवेद तथा अथर्ववेद href="http://hi.wikipedia.org/wiki/अथर्ववेद">अथर्ववेद की संहिताओं का ही बोध होता है, तथापि हिन्दू लोग इन संहिताओं के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों तथा उपनिषदों को भी वेद ही मानते हैं। इनमें ऋक् आदि संहितायें स्तुति प्रधान हैं; ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञ कर्म प्रधान हैं और आरण्यक href="http://hi.wikipedia.org/wiki/आरण्यक">आरण्यक तथा उपनिषद् href="http://hi.wikipedia.org/wiki/उपनिषद्">उपनिषद् ज्ञान चर्चा प्रधान हैं।
ऋग्वेद संहिता - यह चारों संहिताओं में प्रथम गिनी जाती है। अन्य संहिताओं में इसके अनेक सूक्त संग्रह किये गये हैं। यह अष्टकों और मण्डलों में विभक्त है, जो फिर वर्गों और अनुवाकों में विभक्त है। इसमें 10 मण्डल हैं, जिनमें 1017 सूक्त है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,580 मंत्र है। यह संहिता सूक्तों अर्थात् स्तोत्रों का भण्डार है।
सामवेद संहिता - यह कोई स्वतन्त्र संहिता नहीं है। इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। केवल 78 मंत्र इसके अपने हैं। कुल 1549 मन्त्र हैं। यह संहिता दो भागों में विभक्त है -
पूर्वार्चिक : पूर्वार्चिक - छ: प्रपाठकों में विभक्त है। इसे `छन्द´ और `छन्दसी´ भी कहते हैं। पूर्वार्चिक को `प्रकृति´ भी कहते हैं
उत्तरार्चिक : उत्तरार्चिक को `ऊह´ और `रहस्य´ कहते हैं।
यजुर्वेद संहिता - इस वेद की दो संहितायें हैं -
एक शुक्ल : शुक्ल यजुर्वेद याज्ञवल्क्य को प्राप्त हुआ। उसे `वाजसनेयि-संहिता´ भी कहते हैं।`वाजसनेयि-संहिता´ की 17 शाखायें हैं। उसमें 40 अध्याय हैं। उसका प्रत्येक अध्याय कण्डिकाओं में विभक्त है, जिनकी संख्या 1975 है। इसके पहले के 25 अध्याय प्राचीन माने जाते हैं और पीछे के 15 अध्याय बाद के। इसमें दर्श पौर्णमास, अग्निष्टोम, वाजपेय, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, अश्वमेध, पुरूषमेध आदि यज्ञों के वर्णन है।
दूसरी कृष्ण : कृष्ण-यजुर्वेद-संहिता शुक्ल से की है। उसे `तैत्तिरिय-संहिता´ भी कहते हैं। यजुर्वेद के कुछ मन्त्र ऋग्वेद के हैं तो कुछ अथर्ववेद के हैं। `तैत्तिरिय-संहिता´ 7 अष्टकों या काण्डों में विभक्त है। इस संहिता में मन्त्रों के साथ ब्राह्मण का मिश्रण है। इसमें भी अश्वमेध, ज्योतिष्टोम, राजसूय, अतिरात्र आदि यज्ञों का वर्णन है।
अथर्ववेद संहिता - यह संहिता 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड अनुवाकों और अनुवाक 760 सूक्तों में विभक्त है। इस संहिता में 1200 मन्त्र ऋक्-संहिता के हैं। कुल मन्त्र संख्या 6015 है।
[विभाग संपादन: ब्राह्मण" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=3">संपादित करें] ब्राह्मण
इस श्रेणी के ग्रन्थ वेद के अंग ही माने जाते हैं। ये दो विभागों में विभक्त है। एक विभाग के कर्मकाण्ड-सम्बन्धी हैं, दूसरे विभाग के ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी है। ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी ब्राह्मण ग्रन्थ `उपनिषद्´ कहलाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मण ग्रन्थ में एक-न-एक उपनिषद् अवश्य है, किन्तु स्वतन्त्र उपनिषद् ग्रन्थ भी हैं, जो किसी भी ब्राह्मण का भाग नहीं हैं और न `अरण्यकों´ के ही भाग हैं। कुछ उपनिषद् अरण्यकों में भी पाये जाते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ-विषय का वर्णन है। अरण्यकों में वानप्रस्थ-आश्रम के नियमों का वर्णन है। उपनिषदों में ब्रह्मज्ञान का निरूपण किया गया है। प्रत्येक ब्राह्मण किसी न किसी वेद से सम्बन्ध रखता है। ऋग्वेद के ब्राह्मण -ऐतरेय और कौशीतकि (सामवेद के ब्राह्मण -ताण्डय, षड्विंश, सामविधान, वंश, आर्षेय, देवताध्याय, संहितोपनिषत्, छान्दोग्य, जैमिनीय, सत्यायन और भल्लवी है( कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण -तैत्तिरीय है और शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है( अथर्ववेद का ब्राह्मण - गोपथ ब्राह्मण है। ये कुछ मुख्य-मुख्य ब्राह्मणों के नाम हैं।
[विभाग संपादन: आरण्यक" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=4">संपादित करें] आरण्यक
इस विभाग में ऐतरेय, कौशीतकि और बृहदारण्यक मुख्य हैं।
[विभाग संपादन: उपनिषद्" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=5">संपादित करें] उपनिषद्
इस विभाग के ग्रन्थों की संख्या 123 से लेकर 1194 तक मानी गई है, किन्तु उनमें 10 ही मुख्य माने गये हैं। ईष, केन, कठ, प्रश्, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक के अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौशीतकि को भी महत्त्व दिया गया हैं।
उक्त श्रुति-ग्रन्थों के अलावा कुछ ऐसे ऋषि-प्रणीत ग्रन्थ भी हैं, जिनका श्रुति-ग्रन्थों से घनिष्ट सम्बन्ध है।
[विभाग संपादन: वेदांग और सूत्र-ग्रन्थ" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=6">संपादित करें] वेदांग और सूत्र-ग्रन्थ
[विभाग संपादन: वेदांग" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=7">संपादित करें] वेदांग href="http://hi.wikipedia.org/wiki/वेदांग">वेदांग
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छ: वेदांग है।
शिक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।
कल्प - वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं- श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र और धर्मसूत्र।
व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
निरूक्त - वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।
ज्योतिष - इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।
छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।
[विभाग संपादन: सूत्र-ग्रन्थ" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=8">संपादित करें] सूत्र-ग्रन्थ
श्रौत सूत्र - इनमें मुख्य-मुख्य यज्ञों की विधियाँ बताई गई है। ऋग्वेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं। सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं। अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।
धर्म सूत्र - इनमें समाज की व्यवस्था के नियम बताये गये हैं। आश्रम, भोज्याभोज्य, ऊँच-नीच, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं।
गृह्य सूत्र - इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्य सूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्य सूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्य सूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्य सूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौतसूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।
[विभाग संपादन: स्मृति" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=9">संपादित करें] स्मृति
जिन महर्षियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त किया है, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की है, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं।
इनमें समाज की धर्ममर्यादा - वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है। मुख्य स्मृतिकार ये हैं और इन्हीं के नाम पर इनकी स्मृतियाँ है -
मनु
अत्रि
विष्णु
हारीत
याज्ञवल्क्य
उशना
अंगिरा
यम
आपस्तम्ब
संवर्त
कात्यायन
बृहस्पति
पराशर
व्यास
शंख
लिखित
दक्ष
गौतम
शातातप
वशिष्ठ
इनके अलावा निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियाँ उपसमृतियाँ मानी जाती हैं। -
गोभिल
जमदग्नि
विश्मित्र
प्रजापति
वृद्धशातातप
पैठीनसि
आश्वायन
पितामह
बौद्धायन
भारद्वाज
छागलेय
जाबालि
च्यवन
मरीचि
कश्यप आदि
[विभाग संपादन: पुराण" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=10">संपादित करें] पुराण
18 पुराणों के नाम विष्णु पुराण में इस प्रकार है -
ब्रह्म
पद्म
विष्णु
शिव
भागवत
नारद
मार्कण्डेय
अग्नि
भविष्य
ब्रह्मवैवर्त्त
लिंग
वराह
स्कन्द
वामन
कूर्म
मत्स्य
गरूड़ और
ब्रह्माण्ड।
इनके अलावा देवी भागवत में 18 उप-पुराणों का उल्लेख भी है -
सनत्कुमार
नरसिंह
बृहन्नारदीय
शिव अथवा शिवधर्म
दुर्वासा
कपिल
मानव
औशनस
वरूण
कालिका
साम्ब
नन्दिकेश्वर
सौर
पराशर
आदित्य
महेश्र
भागवत तथा
वशिष्ठ।
इनके अलावा
ब्रह्माण्ड
कौर्म
भार्गव
आदि
मुद्गल
कल्कि
देवीपुराण
महाभागवत
बृहद्धर्म
परानन्द
पशुपति पुराण नाम के 11 उपपुराण या `अतिपुराण´ और भी मिलते हैं।
पुराणों में सृष्टिक्रम, राजवंशावली, मन्वन्तर-क्रम, ऋषिवंशावली, पंच-देवताओं की उपासना, तीर्थों, व्रतों, दानों का माहात्म्य विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार पुराणों में हिन्दु धर्म का विस्तार से ललित रूप में वर्णन किया गया है।
[विभाग संपादन: आगम या तन्त्रशास्त्र" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=11">संपादित करें] आगम या तन्त्रशास्त्र
इन शास्त्रों में मुख्यतया हिन्दू धर्म के देवताओं की साधना की विधियाँ बतलाई गई है। किन्तु इनके अलावा इनमें अन्य विषयों का भी समावेश है। ये शास्त्र तीन भागों में विभक्त है -
आगम,
तन्त्र व
यामल
[विभाग संपादन: आगम ग्रन्थ" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=12">संपादित करें] आगम ग्रन्थ
सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा तथा साधन विधि, पुरश्चरण, षट्कर्म-साधन, चतुर्विध ध्यान योग आदि विषयों का वर्णन है।
[विभाग संपादन: तंत्र ग्रन्थ" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=13">संपादित करें] तंत्र ग्रन्थ
सृष्टि, प्रलय, मंत्र-निर्णय, देवताओं का संस्थान, तीर्थवर्णन, आश्रम धर्म, विप्र संस्थान, भूतादि का संस्थान, कल्प वर्णन, ज्योतिष संस्थान, पुराणाख्यान, कोष, व्रत, शौचाऽशौच, स्त्री-पुरूष लक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युग धर्म व्यवहार, अध्यात्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है। तन्त्र शास्त्र सम्प्रदायात्मक है। वैष्णवों, शैवों, शाक्तों आदि के अलग-अलग तंत्र ग्रन्थ हैं।
[विभाग संपादन: यामल ग्रन्थ" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5&action=edit&section=14">संपादित करें] यामल ग्रन्थ
सृष्टि तत्त्व, ज्योतिष, नित्यकृत्य, कल्पसूत्र, वर्णभेद, जातिभेद और युगधर्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है।

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