Wednesday, June 22, 2011

आवागमन का सिद्धांत दलितों के आक्रोश को कुचलने के लिए बनाया गया था

क्या आपने कभी सुना है कि किसी सवर्ण के बालक ने बताया हो कि पिछले जन्म में वह दलित-वंचित था और उसे सवर्णों ने बहुत सताया। दलितों में और कमज़ोर वर्गों में जब दबंगों के विरूद्ध आक्रोश पनपा तो उन्हें शांत करने के लिए यह अवधारणा बनाई गई। इससे यह बताया गया कि अपनी हालत के लिए तुम खुद ही जिम्मेदार हो। तुमने पिछले जन्म में पाप किए थे इसलिए शूद्र बनकर पैदा हुए। अब हमारी सेवा करके पुण्य कमा लो तो अगला जन्म सुधर जाएगा।
बाबा साहब ने संघर्ष का मार्ग दिखाया और लोग जब चले उस मार्ग पर तो इसी जन्म में ही दलितों का हाल सुधर गया। यह सब व्यवस्थाजन्य खराबियां थीं। जिनका ठीकरा दुख की मारी जनता के सिर ही फोड़ डाला चतुर चालाक ब्राह्मणों ने। अब अपनी कुर्सी हिलती देखकर नई नई लीलाएं रचते रहते हैं ये।
ये तो पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दें, यह तो फिर भी बोलने वाला बालक है।
अगर पाप पुण्य का फल संसार में बारंबार पैदा होकर मिलता है तो जाति व्यवस्था को जन्मना मानने वाला और अपने से इतर अन्य जातियों को घटिया मानने वाला कोई भी नर-नारी स्वर्ग में नहीं जा पाएगा। वह ब्लॉगिंग तो कर सकता है परंतु उसे यहीं जन्म लेना होगा और यहां जन्म होता नहीं है। यह एक भ्रम है जिसे सुनियोजित ढंग से फैलाया गया है। यही कारण है कि यह सिद्धांत भारत के दर्शनों में ही पाया जाता है।

10 comments:

  1. आवागमन और पुनर्जन्म की अवधारणा का इस्तेमाल भारत में गुलामी की प्रथा को चलाए रखने के लिए किया गया है, यह सच है. संतमत ने इसी लिए धर्म का सहारा लेकर आवागमन से निकलने की अवधारणा इजाद की जो धीरे-धीरे कार्य कर रही है.

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  3. दिव्या के ब्लॉग पर मैंने आपकी टिप्पणी को उद्धिृत किया है. कृपया देख लें.

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  4. तुम ईश्वर के लिए ऐसी बात लिखते हो
    निश्चित ही तुम एक गन्दी नाली के कीड़े हो

    स्त्री जिसने तुम्हे पैदा किया है निश्चित ही तुम्हे पैदा करके मार डालना चाहिए था
    रहा जाती का तो बता दूँ कि
    "भगवान ब्रह्मा के मुख से तो ब्राह्मिन,
    भुजा से क्षत्रिय,
    उरु[जंघा ] से वैश्य,
    पैर से सूद्र उत्पन्न हुए ."
    यही बात मनुस्मृति में कही हुई है और ऐसा ही वर्णन भागवत पुराण में भी है|


    वर्ण का अर्थ हि "स्वभाव" होता है | वर्णाश्रम व्यवस्था में वेद का प्रमाण
    ब्राह्मणोंsस्य मुखमासिद बाहू राजन्य: कृत:|
    उरु तदस्य यद् वैश्य: पदाभ्याम शुद्रोसsजायत || यजुर्वेद (३१/१७)
    इस मंत्र में आल्कारिक रूप में मनुष्य समाज में चारो वर्णों के कर्तव्यो का निरूपण किया है | समाज में ब्राहमण मुख अथवा शिर्स्थानिया है, क्षत्रिय बाहू समान है ,वैश्य झांगो के समान और शुद्र पैरो के तुल्य है |
    "ब्रह्म हि ब्राह्मण:"- ब्रह्म पद इश्वर और वेद दोनों का वाचक है| जो वेद और इश्वर का ज्ञाता है, विद्या, सत्यभाषण, अदि गुणों से युक्त है तथा श्रेष्ट कर्मो में प्रवृत है वह ब्राह्मण है | जो बल, पराक्रम, आदि गुणों से युक्त होकर शरीर में भुजाओ के समान समाज की रक्षा करता है वह क्षत्रिय (क्षतात त्रायते ) कहता है | बल पराक्रम हि उसकी भुजाए है | अपने क्षत्रियोचित कर्त्तव्य का पालन करने से हि वह "राजन्य:" अर्थात यशस्वी ( राज्रू दीप्तौ ) होता है | इसी कारन वह "मित्र " ( सबका सुखदाता ) और "वरुण" (श्रेष्ठ) कहता है | उसे पराक्रम करने से हि आनंद आता है | इसी प्रकार जो खेती ,व्यापार आदि के लिए जांघो के समान भाग-दौड़ में समर्थ होने से सर्वत्र प्रवेश करता आता जाता है,उसे वैश्य कहते है | जो बौधिक स्थर पर हिन् होने पर भी शारीरिक श्रम से सबकी सेवा करता है,वह शुद्र कहता है |
    ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वैश्य और शुद्र यह चार भेद जन्मा पर आधारित न होकर गुण-कर्म-स्वभाव पर आधारित है यह सिद्दांत सर्व शास्त्र सम्मत एवं तर्क प्रतिष्टित है |


    तुम पापी हो, मूर्ख हो और निश्चित ही हिन्दू नहीं हो !!!
    क्यूंकि हिन्दू किसी भी मजहब के ईश्वर की बुराई नहीं करता !!!
    तुम नरक में जाने को प्रयत्नशील हो !!!

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  5. दीपावली की शुभकामनाएँ

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  6. आपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
    मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
    अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
    दिनेश पारीक
    http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html

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  7. ghin aati hai aise logo se jo hindu hokar hindu dharm k khilaaf bolte hai... :( hindu koi dharm nhi balki sukhad jeevan jine ki ek prachin aur sanatan kalaa hai "

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  8. ये सत्य गौतम जैसे लोग अपने माँ के साथ भी सोने मे संकोच नहीं करने |
    डॉ. अम्बेडकर ने 1935 में ऐलान किया,"यद्यपि मैं मादर चोद नहीं महा मादर चोद हूँ और मैं अपनी माँ को चोदता इस से पहले ही भोशरी वाली मर गयी". उसने धर्मांतरण करते समय कहा था "आज से हम सब महा मादर चोद हुये".सत्य गौतम को कोइ प्रमाण चाहिए क्या डॉ. अम्बेडकर के मादर चोद होने का ......................... सब साले रंडी की औलाद है |

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  9. सत्य, यदि आप सत्य को प्रयत्नशील हैं, तो निश्चय ही शूद्र नहीं हैं । जैसा कि उपर किसी ने लिखा कि हिन्दू ग्रंथों में वर्ण का वर्णन है, जाति का नहीं. वर्ण स्वभाव-कर्म से निश्चित होता है, जन्म से नहीं । गीता में या वेदों में कहीं जाति शब्द का प्रयोग तक नहीं हुआ है । जाति का अर्थ है जन्म - इसी मूल से जात, नवजात, जनन,जननी आदि जैसे शब्द बने हैं । इसी को तेलगु में कुलम (वंश, जन्म से जुड़े) और तमिळ में जाद कहते हैं । ये शब्द दूसरो को बेवकूफ़ बनाने के लिए बनाया गया है और लगभग १६०० सालों से भारत में प्रचलित है । इससे पहले जन्म के आधार पर कोई वर्ण नहीं था । जैसा कि ग्रंथों में लिखा है, वर्ण सत, रज और तम गुणों के मिश्रण (गीता अध्याय ५) से बनता है और एक बौद्धिक स्तर है । व्यक्तिगत रूप से मैं किसी जन्म के आधार की जाति में विश्वास नहीं करता हूँ ।

    इसी सिद्धांत से, ब्राह्मण वो नहीं है जो किसी द्विवेदी, चतुर्वेदी या शर्मा के घर पैदा लिया हो । ब्राह्मण वो है जो सत्य को जानता हो - हमेशा अपना कर्तव्य जानता हो और कठिन से कठिन परिस्थिति में भी यह जानता हो कि उसे ग़लत नहीं करना चाहिए चाहे कितना भी तात्कालिक फ़ायदा दिख रहा हो । इसी प्रकार उसे दूसरो को एक बराबर दृष्टि से देखना चाहिए, यहाँ तक कि जानवरों को भी । मैं समझता हूँ कि दुनिया में बहुत कम लोग हैं जो ऐसा करते हैं अतः हम सब ब्राह्मण नहीं है । इसी प्रकार शूद्र वो है जो किसी से अनदेखे ही घृणा द्वेष या डर करे । जानने का यत्न कम करे और पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहे इत्यादि । उसे कोई समझदार (ब्राह्मण, स्वभाव से, जन्म से नहीं) किसी क्षण में उसका कर्तव्य बताए भी तो वो उलटा उसी पर गुस्सा हो जाए । उदाहरणस्वरूप ट्रेन में चलते समय अगर सीट को लेकर झगड़ा हो रहा हो तो बेहतर है कि किसी समझदार आदमी से सुलह करवा लें । अगर वो व्यक्ति अपने फायदे के लिए कोई निर्णय दे तो वह कदापि ब्राह्मण नहीं और अगर आपने उसकी बातों में निष्पक्षता जान ली तो आप कदापि शूद्र नहीं । शूद्र तो वो है जो समझाने से भी ना समझे, जैसे ज़ाकिर नाईक, जैसे मुलायम सिंह (जन्म से कुछ भी हों) । ये कोई जन्म की चीज़ नहीं है - स्वभाव की चीज़ है । और आप-हम से लेकर ओसामा बिन लादेन और आईंसटाइन सबों पर लागू होती है ।

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  10. Dharam k naam pe hi to aapas me lad mar rahe hain sab, Hindu-hindu aaps me lad rahe ye kah k ki hum Rajput hain Hum jati me sabse unche hain, koi keh raha h hum Brahman hai,koi keh raha tum niche jati k mochi ho, Ek hi dharam me agar etne unch nich ho or sab ekdusre nicha dikhaye to ye Dharam kis kam ka sab apne me hi lad maro.. sab apne aap ko uncha or pavitra batana chahta h.. or raha eslam dharm to usme v siya or sinni me v unch nich k chalte aye din ladte hain. mere khayal se koi dharam hi nahi rahna chahiye na rahega baas na bajegi bansuri.. Koi ye sikh kyun nahi deta ki hum "insaan" or "INSANIYAT " hi hmara Dharm h.. Sabka malik ek...

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