डॉ. अम्बेडकर ने 1935 में ऐलान किया,‘यद्यपि मैं हिन्दू जन्मा हूं , मैं हिन्दू मरूंगा नहीं।‘ यदि कोई मनुष्य अपने आपको छुआछूत की दुर्गति से मुक्त करवाना चाहता है, जाति-पांति की लानत से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे हिन्दू मत को एकदम तिलांजलि देनी होगी। उन्होंने देखा कि हिन्दू धर्म में अछूत के रूप में पैदा हुए मनुष्य के लिए मानव की तरह सुशीलता और शान से जीवन व्यतीत करना असम्भव है।‘‘ यही कारण था कि डॉ. अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म को त्यागा।
Saturday, June 26, 2010
भोग सम्भोग एक अवतारी पुरुष का
कृष्ण भारत के आदर्श हैं . प्रेम करना तो कोई उनसे सीखे . अगर उनका मार्ग अपनाया जाये तो समाज से दहेज़ प्रथा की अर्थी उठ जाएगी . उनकी रास लीला और सम्भोग का वर्णन सवर्ण लेखक कैसे करता है , देखो .
http://books.google.co.in/books?id=35o5rtuYOYUC&pg=PA543&lpg=PA543&dq=%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A5%8B%E0%A4%97+%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3&source=bl&ots=5EQHCDsDUr&sig=-c2I9ZzG425xH68cPpalLoAr3jg&hl=en&ei=zwEmTIO4HoGUrAfx3qyFBQ&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=10&ved=0CDYQ6AEwCQ#v=onepage&q=%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A5%8B%E0%A4%97%20%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3&f=false
aap ne apni pehchaan chhupaane ke kaarano ka khulaasa nahi kiya ....!mujhe lagta hai iski jarurat bhi nahi hai......
ReplyDeleteduvidha kisko nahi hai aaj....
kuchh shanka hai man me spasht puchhe kisi se.....
shubhkaamnaaye swikaar kare....
kunwar ji,
कभी कभी कवि जो कुछ लिखता है उसका अर्थ कुछ और होता है लेकिन लोग उसका अर्थ कुछ और लगा लेते है
ReplyDeleteअच्छा होता की अगर कवि से ही ये पूछ लिया होता वह किस बात को सोच कर या किस धारणा को लेकर इन
पंक्तियों को लिख रहा है