समर्पण
डा. अम्बेडकर के इस संसार से विदा होने पर मेरे सार्वजनिक जीवन का आरम्भ हुआ। चालीस वर्ष पूर्व, जब ,
मैंने 6 दिसम्बर,1956 को सरकारी नौकरी त्याग कर अम्बेडकर-मिशन के प्रचार व प्रसार का बीड़ा उठाया तो यह गुमान भी न था कि मार्ग इतना कठिन है, ऐसा ख़तरनाक और दुखदायक है।
इन वर्षों में वह कौन सी आफ़त है जो मुझ पर नहीं टूटी। हवालात व जेल के दुख झेले, सरकारी और ग़ैर सरकारी मुक़द्दमों की परेशानियां सहन कीं। कभी अपनों का परायापन, कभी साथियों का विश्वासघात, तो कभी साधनहीनता के थपेड़े। यही सदा महसूस हुआ कि सुख-चैन मिलने का नहीं।
कुछ ही वर्षों में वह दौर बीत गया, फिर एक नया दौर शुरू हुआ, कर्तव्य पालन के इश्क ने संघर्ष से मुहब्बत पैदा की, विपरीत हालात ने दृढ़ता को जन्म दिया,दृढ़ता ने साहस को और फिर साहस ने सुख और दुख के बीच के सभी भेद मिटा डाले -
दुनिया मेरी बला जाने महंगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूं हस्ती की क्या हस्ती है
फ़ानी बदायंूनी
इस अवस्था तक पहुंचने में जिस ने मेरा हाथ स्नेहपूर्ण मजबूती से निरन्तर थामे रखा जिन्होंने बंगलूर(कर्नाटक राज्य)
में भीमराव अम्बेडकर की याद को चिरस्थायी बनाने और साधनहीन विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने हेतु मैडिकल, डेंटल और इंजिनियरिंग कालेजों, स्कूलों, अनेकों होस्टलों की स्थापना की, अपने उसी
गुरूभाई श्री एल. शिवालिंगईया साहिब
को यह रचना सादर समर्पित है।
From Hinduism : Dharm ya Kalank
डा. अम्बेडकर के इस संसार से विदा होने पर मेरे सार्वजनिक जीवन का आरम्भ हुआ। चालीस वर्ष पूर्व, जब ,
मैंने 6 दिसम्बर,1956 को सरकारी नौकरी त्याग कर अम्बेडकर-मिशन के प्रचार व प्रसार का बीड़ा उठाया तो यह गुमान भी न था कि मार्ग इतना कठिन है, ऐसा ख़तरनाक और दुखदायक है।
इन वर्षों में वह कौन सी आफ़त है जो मुझ पर नहीं टूटी। हवालात व जेल के दुख झेले, सरकारी और ग़ैर सरकारी मुक़द्दमों की परेशानियां सहन कीं। कभी अपनों का परायापन, कभी साथियों का विश्वासघात, तो कभी साधनहीनता के थपेड़े। यही सदा महसूस हुआ कि सुख-चैन मिलने का नहीं।
कुछ ही वर्षों में वह दौर बीत गया, फिर एक नया दौर शुरू हुआ, कर्तव्य पालन के इश्क ने संघर्ष से मुहब्बत पैदा की, विपरीत हालात ने दृढ़ता को जन्म दिया,दृढ़ता ने साहस को और फिर साहस ने सुख और दुख के बीच के सभी भेद मिटा डाले -
दुनिया मेरी बला जाने महंगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूं हस्ती की क्या हस्ती है
फ़ानी बदायंूनी
इस अवस्था तक पहुंचने में जिस ने मेरा हाथ स्नेहपूर्ण मजबूती से निरन्तर थामे रखा जिन्होंने बंगलूर(कर्नाटक राज्य)
में भीमराव अम्बेडकर की याद को चिरस्थायी बनाने और साधनहीन विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने हेतु मैडिकल, डेंटल और इंजिनियरिंग कालेजों, स्कूलों, अनेकों होस्टलों की स्थापना की, अपने उसी
गुरूभाई श्री एल. शिवालिंगईया साहिब
को यह रचना सादर समर्पित है।
From Hinduism : Dharm ya Kalank
वाकई मे बेहद कठिन और दुखदायक सफर रहा.
ReplyDeleteऐसे कठिन सफर मे ही सच्चे लोगो की परख होती है.
और फिर जिसको संघर्ष से मोहब्बत हो जाये. उसके लिये हर कठिन सफर आसान हो जाता है.
वाकई बहुत कठिनाई से गुज़रे हैं अम्बेडकर जी।
Deleteआज़ मुझसे कोई पुछता है कि अम्बेडकर कोन थे मेरा स्टीक उत्तर,5000 हजार साल का पाखणवाद 40 साल में बदल दिया वो 32डिग्री नौ भाषा का ज्ञाता डॉ आंबेडकर है संविधान निर्माता।
सत्य गौतम जी आपने कई दिनों बाद पोस्ट डाली ? में तो यह समझा था कि आप भी यहाँ पर उपस्थित स्वर्णवादी लोगों से डर गए हैं लेकिन आप बहुत हिम्मत वाले हैं आपकी पोस्ट देखकर सहज ही पता चलता है कि आप भी अपनी पोस्ट में लिखी बातों की तरह ही दृढ़ निश्चयी हो इसी तरह बिना भय के लिखते रहें हमारी शुभकामनाएँ आपकी साथ हैं
ReplyDeleteसत्य जी, नमस्कार. बहुत ही अच्छा अनुभव कर रहे हैं आपके इस क्रन्तिकारी ब्लॉग पर आकर.
ReplyDeleteब्लॉग के मुख्या-पृष्ट पर जहाँ हिंदू-ग्रन्थ की हेडिंग लगा रही है वहाँ आपने आंबेडकर जी के विचार लिखे हैं : ‘यद्यपि मैं हिन्दू जन्मा हूं , मैं हिन्दू मरूंगा नहीं।‘
कृपया वहाँ पंडित जवाहर लाल नेहरु के विचार भी लिख दीजिए : "मुझे हिंदू कि अपेक्षा गधा कहलवाना मंज़ूर है"
दूसरी बात
आज दलितों के उत्थान में लगे नेताओं को देख मन ही मन बहुत खुश महसूस होती है और फक्र होता है भारत देश पर. पर क्या - इन नेताओं ने दलितों के लिए कुछ किया - नहीं मात्र अपनी रोटियां सेंकी - चाहे वो पासवान जी हों या फिर मायावती जी.
क्या नारे देने से समस्या खत्म हो जायेगी. आज आधुनिक भारत का एक विचारक कहता है "जाति तोडो - भारत जोड़ो" पर आप हिंदू धर्मग्रंथों का अनादर करते हुवे मजाक उड़ाते हुवे, और अपमानित करते हुवे अपनी बात करते हो.
क्या धर्मपरिवर्तन के बाद आपको समाज में वो सम्मान मिला है ?
क्या आज एक हिंदू दलित - इसाई बनाने के बाद दलित इसाई नहीं कहलाता. क्या एक दलित मुसलमान बनाने के बाद - आम मुसलमान के साथ शादी कर सकता है - नहीं न?
फिर क्यों धर्म छोड़ा जा रहा है.
आप - शिक्षा के माध्यम से अपने समाज कि विचारधारा बदलो - बाकि का समाज तो अंगीकार करने के लिए तैयार बैठा है आपको.
बस, अपनी मानसिकता बदलनी होगी - एक दलित डीएम अगर अपने मातहत ब्राहमण या फिर राजपूत कर्मचारी को हेय दृष्टि से नहीं देखता.?
आज जमाना बदल चुका है - हम बाजारवाद में शामिल है - और यहाँ आपकी जात नहीं जेब देखि जा रही है.
पुराने ग्रंथों को छोड़ कर नयी विचारधार में आप आओ - आपका स्वागत है.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमहामानव अम्बेडकर साहब के नाम का यूं प्रयोग न करें... उनके मिशन का प्रचार-प्रसार दुखदायक नहीं है.... कॄपया सर पर मैला ढो़ने की परम्परा को रोकने में अपना सार्थक योगदान दें.. श्रमदान करें, दलित बस्तियों में जाकर सफाई अभियान, शिक्षा अभियान चलायें...
ReplyDeleteabe Indian citizen kutte...dalit to sadiyon se tumhari bastiyan saaf kar rahe hain tum kya sujhav de rahe ho ki unki bastiyon me safai abhiyaan shiksha abhiyan chalaye.....murkh saale bahan ke lodo hinduon ab to maan jao tumhare granthon me tumhari maa bahan ki chut ki dhajjiyan uda rakhi hain fir bhi garv se kahte ho ki hum hindu hai..sharm karo kutton
ReplyDeletekindly share link for hinduism dharm ya kalank book if any one have plz
ReplyDeletehttps://youtu.be/NvtB8xunuu4
ReplyDeleteकृपया मेरे चैनल को subscribe करे , दलित उत्थान और हिन्दू धर्म का कड़वा सच उजागर करना मेरे चैनल का उद्देश्य है ।
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ReplyDeleteriya daily vlog
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