
मनु महाराज के जिस एक श्लोक (यत्र नार्यस्त पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः) के आधार पर नारी की पूजा की बात की जाती रहती है, लेकिन उन्हीं मनुमहाराज की एवं अन्य अनेक धर्मशास्त्रियों/धर्मग्रन्थ लेखकों की बातों को हम क्यों भुला देते हैं? इनको भी जान लेना चाहिये :-
मनुस्मृति : ९/३-
स्त्री सदा किसी न किसी के अधीन रहती है, क्योंकि वह स्वतन्त्रता के योग्य नहीं है।
मनुस्मृति : ९/११-
स्त्री को घर के सारे कार्य सुपुर्द कर देने चाहिये, जिससे कि वह घर से बाहर ही नहीं निकल सके।
मनुस्मृति : ९/१५-
स्त्रियाँ स्वभाव से ही पर पुरुषों पर रीझने वाली, चंचल और अस्थिर अनुराग वाली होती हैं।
मनुस्मृति : ९/४५-
पति चाहे स्त्री को बेच दे या उसका परित्याग कर दे, किन्तु वह उसकी पत्नी ही कहलायेगी। प्रजापति द्वारा स्थापित यही सनातन धर्म है।
मनुस्मृति : ९/७७-
जो स्त्री अपने आलसी, नशा करने वाले अथवा रोगग्रस्त पति की आज्ञा का पालन नहीं करे, उसे वस्त्राभूषण उतार कर (अर्थात् निर्वस्त्र करके) तीन माह के लिये अलग कर देना चाहिये।
आठवीं सदी के कथित महान हिन्दू दार्शनिक शंकराचार्य के विचार भी स्त्रियों के बारे में जान लें :-
“नारी नरक का द्वार है।”
तुलसी ने तो नारी की जमकर आलोचना की है, कबीर जैसे सन्त भी नारी का विरोध करने से नहीं चूके :-
नारी की झाईं परत, अंधा होत भुजंग।
कबिरा तिन की क्या गति, नित नारी के संग॥
अब आप अर्थशास्त्र के जन्मदाता कहे जाने वाले कौटिल्य (चाणक्य) के स्त्री के बारे में प्रकट विचारों का अवलोकन करें, जो उन्होंने चाणक्यनीतिदर्पण में प्रकट किये हैं :-
चाणक्यनीतिदर्पण : १०/४-
स्त्रियाँ कौन सा दुष्कर्म नहीं कर सकती?
चाणक्यनीतिदर्पण : २/१-
झूठ, दुस्साहस, कपट, मूर्खता, लालच, अपवित्रता और निर्दयता स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।
चाणक्यनीतिदर्पण : १६/२-
स्त्रियाँ एक (पुरुष) के साथ बात करती हुई, दूसरे (पुरुष) की ओर देख रही होती हैं और दिल में किसी तीसरे (पुरुष) का चिन्तन हो रहा होता है। इन्हें (स्त्रियों को) किसी एक से प्यार नहीं होता।
पंचतन्त्र की प्रसिद्ध कथाओं में शामिल शृंगारशतक के ७६ वें प में स्त्री के बारे में लिखा है कि-
“स्त्री संशयों का भंवर, उद्दण्डता का घर, उचित अनुचित काम (सम्भोग) की शौकीन, बुराईयों की जड, कपटों का भण्डार और अविश्वास की पात्र होती है। महापुरुषों को सब बुराईयों से भरपूर स्त्री से दूर रहना चाहिये। न जाने धर्म का संहार करने के लिये स्त्री की रचना किसने कर दी!”
मेरा तो ऐसा अनुभव है कि इस देश के कथित धर्मग्रन्थों और आदर्शों की दुहाई देने वाले पुरुष प्रधान समाज और धर्मशास्त्रियों ने अपने नियन्त्रण में बंधी हुई स्त्री को दो ही नाम दिये हैं, या तो दासी (जिसमें भोग्या और कुल्टा नाम भी समाहित हैं) जो स्त्री की हकीकत बना दी गयी है, या देवी जो हकीकत नहीं, स्त्री को बरगलाये रखने के लिये दी गयी काल्पनिक उपमा मात्र हैं।
स्त्री को देवी मानने या पूजा करने की बात बो बहुत बडी है, पुरुष द्वारा नारी को अपने बराबर, अपना दोस्त, अपना मित्र तक माना जाना भारतीय समाज में निषिद्ध माना जाता रहा है?
जब भी दो विषमलिंगी समाज द्वारा निर्धारित ऐसे स्वघोषित खोखले आदर्शवादी मानदण्डों पर खरे नहीं उतर पाते हैं, जिन्हें भारत के इतिहास में हर कालखण्ड में समर्थ लोगों द्वारा हजारों बार तोडा गया है तो भी 21वीं सदी में भी केवल नारी को ही पुरुष की दासी या कुल्टा क्यों माना जाता है? पुरुष के लिये भी तो कुछ उपमाएँ गढी जानी चाहिये! भारत में नारी की पूजा की जाती है, इस झूठ को हम कब तक ढोते रहना चाहते हैं?
इस्लामी धर्म-प्रचारक के किसी भी ब्लाग पर टिप्पणी करना वैसे तो उन्हें बढ़ावा देने के ही समान है.... लेकिन फिर भी तमाम निर्योग्ताओं के बाद भी हिन्दुओं में लीलावती जैसी प्रख्यात गणितज्ञ महिला हुई. एक भी मुस्लिम महिला का नाम बता दें उन के समकालीन तो महान कृपा होगी....
ReplyDeleteनारी व दलितों के साथ अन्याय यहाँ सदैव होता आया है लेकिन आप इसके अतिरिक्त कोई और सुधार की बात करें तो अच्छा होगा
ReplyDeleteऔर कुछ न हो तो इंद्राणी जी का उत्तर दो
ReplyDeleteपोस्ट आपकी अच्छी पर इस समय इसकी आवश्यकता नही थी
ReplyDeleteteek hai bhai ....pahle naari ki halat bahut kharab thi
ReplyDeleteper ab sab pad likh gaye hai
aap naari ko maan samaan dena suru kero
baki bhi sab apne aap kerne lege
wase bhi aap in 2take ke write ki baat kyo kerte ho
ReplyDeletehamra mool dhrm granth ved hai
aap unse kyo nhi prabhavit hote hai
ye sab usnke apne vichar hai
kisi ke likhne se kuch nhi ho jata dost
aap rasta nhi doge to naarikhud rasta bana legi
wase bhi aaj naari pusrose se aage bad rehe hai
aadhi barbadi ki jad to ye tulsidas aur ram charit manas hai
ReplyDeleteएक मनुस्मृति की बात ले कर क्या बैठ गये भाई साहब आप? मनुस्मृति को हिंदू जनमानस में वह स्थान प्राप्त नही है जो पुराणों , वेदों तथा रामायण को है. अब आप सीना ठोंक कर यह कह रहे हैं की भारत में कभी नारी की पूजा नही की गयी तो साहब पिछले से पिछले आमचुनावों में तो आपकी पूरी क़ौम सोनिया माई के चरणों में लेट नहीं गयी थी? उन्हीं के सुपुत्र दलितों की झोंपड़ी का पानी पी गये और आप लोगों ने मायावती से गद्दारी कर उनको भरपूर वोट टिकाए !! आप ही की बिरादरी ने माई अंबेडकर को देवी माना है , देवी को माता मानना विशुद्ध हिंदू संस्कार है कोई बौद्ध संस्कार नहीं . और सच कहा जाए तो पूरी की पूरी दलित बिरादरी सांस्कृतिक रूप से हिंदू ही है और हिंदू रीति रिवाजों का पालन करती है इसलिए आरक्षण का लाभ मिलता है. अन्यथा एक बार बौद्ध बन गये फिर पिछड़े कैसे रहे ?? अगड़े न बन गये?
ReplyDeleteBhai sahab tathya Kay aadhar per bolo aarakshan day ker koi aahsan nahi Hai humara adhikar Hai humay koi shouk nahi Hai tumharay Hindu dharm main rahnay ka aarakshan khatam Hindu dharam ka kya hasra hoga socho huzaraon Sal tum agaday aagay rahay ho phir bhi desh gulam raha
Deletebahan ke lodo hinduon ab to maan jao tumhare granthon me tumhari maa bahan ki chut ki dhajjiyan uda rakhi hain fir bhi garv se kahte ho ki hum hindu hai..sharm karo kutton
ReplyDeleteAnonymous said...
ReplyDeletebahan ke lodo hinduon ab to maan jao tumhare granthon me tumhari maa bahan ki chut ki dhajjiyan uda rakhi hain fir bhi garv se kahte ho ki hum hindu hai..sharm karo kutton
के जवाब में किसी हिन्दू का जवाब -::::::
मादरचोदों दम है तो किसी प्रोफाइल के रूप में सामने आओ तो तुम्हारी मैया की छुट हम बजाते है साले हिन्दू होकर भी हिन्दू धर्म से पंगा बहन चोद अगर दम है तो अपना नाम हिन्दुओ से अलग रख कर दिखा राबर्ट पिटर ,तब तो माँ चुदा के राम या भगवन का ही नाम धर देते हो अपनी हराम की औलादों का
I am totally against the un-touchability. All human being are same. But Ambedkar had done maximum damage to this country. He was a mad. Because of his personal wrong beliefs, he had prepared a Constitution which is useless. We need to rewrite our constitution.
ReplyDeleteनारी की पूजा होती है! और प्रत्यक्ष होती है! कुमारी पूजन और सुवासिनी पूजन आदि इसके रूप है! समाज मे अनर्गल प्रलाप कर के भ्रम फ़ैलाना बन्द करो! नारी और पुरुष दोनो के लिये जो शासन सूत्र दिये गये है! उनसे, जो वैराग्य के लिये उन्मुख है उनके लिये नारी से बडा बन्धन कोई नही इसलिये शंकराचार्य ने ऐसा कहा है! यदि नारी अवगुणॊं की खान हो तब भी उसका परित्याग न कर के पालन पोषण करता रहे मनु का ये वचन नही दिखा!
ReplyDeleteऔर अंबेडकर के पीछे दिवानों के तरह घूमने वाले अंबेडकर ने जिस बुद्ध को अपना सर्वस्व माना था उस बुद्ध ने रात मे घर मे सोती हुई अबला को छॊड दिया ये न्याय था?? ये कुछ ऐसी बाते हैं जिसमे जबतक पूरी समझ न हो बोलना बेकार है! मैकाले की आत्मा को तृप्त करना बन्द करो!!
बिल्कुल सत्य
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